शायद कुछ क़र्ज़ चुकाना
बाक़ी रह गया होगा मेरे हिस्से का ...
वरना आज मेरी ख्वाहिशें अधूरी ना होती
कश्ती है पुरानी मगर दरिया बदल गया;
मेरी तलाश का भी तो जरिया बदल गया,
न शकल बदली न ही बदला मेरा किरदार,
बस लोगों के देखने का नजरिया बदल गया
"ज़िन्दगी में यही देखना ज़रूरी नहीं है,
कि कौन हमारे आगे है या कौन हमारे पीछे........
कभी यह भी देखना चाहिये कि,
हम किसके साथ हैं, और कौन हमारे साथ है......"
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अक्सर रातो में खुद से पूछता हूं
क्यों उसने कुछ न कहा
प्यार जो था तेरे मेरे दरमिया
अब बाकी क्यों न रहा ...
ग़र उसकी हर बात मे हामी
ना भरी तूने तो बेवफ़ा
कहा जाएगा तू,,
क्युंकी लोग अब मोहब्बत नहीं
व्यापार करते हैं,,
बेवफाओ की दुनिया मे
वफा किस काम की
नशा है यार का
फिर जरूरत क्या है जाम की
इश्क मे ख्वाब का टूटना
ये तो मोहब्बत का दस्तूर होता है
दर्दो जख्म युही नही मिलते
अपना भी कुछ कसूर होता है
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सुकून मिलता है कुछ बातों को
पन्नों पर उतार देने से,,
कह भी देता हूं मन की हर बात
और आवाज भी नहीं होती...
दिल मे जो बस जाए फिर निकलते कहा
दर्द हद से बढ जाए तो आसू बहते कहा
मोहब्बत ? मौत की सगी बहन है दोस्तो
दोनो की गिरफ्त मे आने बाद लोग बचते कहा
दर्द बेहद है
दवा कोई नही
मेरे पास मेरे आसू
के सिवा कोई नही
बद्दुआ हज़ार पर
दुआ कोई नही
अपने तो लगे बहुत
अपना हुआ कोई नही
आज भी ख्वाबो ख्याल मे
उसके अलावा कोई नही
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सच्ची मोहब्बत में बिछड़ने के बाद
.
.
एक वो है जो रोज़ मेरी लंबी उमर
और सलामती की दुआ मांगता है,
एक मै हूं जो उससे बिछड़कर
रोज़ मौत का इंतजार करता हूं
कमरे के दीवारें पूछ रही थी मुझसे
तेरे पास कोई आता नहीं
या तनहाई तुझे बुलाती है .....
जाती क्यों नहीं है इसके बाहर
किस बात से इतना घबराती है।
आज भी उलझन होती है तेरे नाम से
ना जाने कौन सा रिश्ता है
तुझसे जो सुलझता ही नहीं
कुछ उलझनों के जबाव का
इंतजार छोड़ ही देना चाहिए,,
जरूरी तो नहीं हर उलझनों
के जबाव मिल ही जाए...
नींद चुराने वाले पूछते हैं
सोते क्यों नही,
इतनी ही फिक्र है
तो फिर हमारे होते क्यों नही।
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लाख संवार लो तुम
जिस्म को अपने,
मोहब्बत तो तुम्हारे
अल्फाज़ो से ही करते है ||
एक ख्वाब मुठ्ठी से खोला है मैंने
और नींद की आंखें जगाईं हैं
अब कहाँ तक उड़ेगा ख्वाब जाने
मैंने उम्मीद की पलकें उठाईं हैं
पर किसी से लिये हैं उसने या
खुद ही उसने पंख उगाए हैं
वो ज़मीं पे रहने वाला कहाँ है
उसने घर अपने गगन में बताए हैं
रह जाए वो यहीं कहीं मुझ तक
मैंने दरिया पर चाँदनी बिछाईं हैं
अब कहाँ तक उड़ेगा ख्वाब जाने
मैंने उम्मीद की पलकें उठाईं हैं
मैं जो उससे इरादे अपने कह दूँ
वो नादां क्यूँ सहम सी जाती है
वो पूंछती है ऐसे कई सवालों को
उसका मुझ पर वहम सा जाता है
उसको ही बंद कर के आंखों में
न जाने कितनी रातें बिताईं हैं
अब कहाँ तक उड़ेगा ख्वाब जाने
मैंने उम्मीद की पलकें उठाईं है।
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फ़िर एक श्याम ढलने को है,
किससे बात करे,
किससे मुलाक़ात करे,
किससे दर्द बाटे,
किससे ख़ुशी,
यही सोच में फ़िर दिन निकाल दिया....!!
रिश्ते बनाये रखना
यूँ तो कुछ फासले है
पर साथ होने का एहसास बनाये रखना
रूठे हुए दिल को भी
मिलने की आस बनाये रखना...
जब तक खुद का था बड़ा खुश
सा रहता था,,
जब से खुद को किसी और मे
खोजने की ख्वाहिशें पाली है
उलझनों से दोस्ती सी हो गई हैं अब..
सिर्फ कर्म को मानते थे हम
अब तो शायद तसल्ली के लिए
किस्मत पर भी भरोसा सा हो
गया है,,
ग़र कोई चीज मेरी है तो वो मिलेगी
जरूर...
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फिर से सवेरा हुआ है ..
मुजे झूठी दुनिया का दीदार कर लेने दे ॥
सो रहा कल रात भर से.
मुजे आज फिर से कुछ काम कर लेने दे ॥
थक गए हु इस जिंदगी से
मुजे आज थोड़ा और पसीना बहा लेने दे ॥
पिघल जाऊंगा इस छाँव से ..
मुजे थोड़ी इस सूरज की धूप ले लेने दे ॥
अब तू आजा नीचे मेरे सर से ..
मुजे हसरत है आज मुजे आँगन मे उछल ने दे ॥
दिन भर जलता रहा सूरज से ..
मुजे अब रात के अँधेरों मे खो जाने दे ॥
ना जाने कितनी दुआ ओर फ़रियाद लिए ..
अब ये सूरज ढल रहा है अब बस उसे ढल जाने दे ॥
कुछ दबी हुई ख़्वाहिशें है, कुछ मंद मुस्कुराहटें.
कुछ खोए हुए सपने है, कुछ अनसुनी आहटें.
कुछ दर्द भरे लम्हे है, कुछ सुकून भरे लम्हात.
कुछ थमे हुए तूफ़ाँ हैं, कुछ मद्धम सी बरसात.
कुछ अनकहे अल्फ़ाज़ हैं, कुछ नासमझ इशारे.
कुछ ऐसे मंझधार हैं, जिनके मिलते नहीं किनारे.
कुछ उलझनें है राहों में, कुछ कोशिशें बेहिसाब.
बस इसी का नाम ज़िन्दगी है चलते रहिये, जनाब.
मेरे शहर की शाम अब भी बहुत खूबसूरत है,
यहाँ सूरज अब भी ढलता है,
पतंगे अब भी उड़ती हैं,
पंछी अब भी घर लौटते हैं।
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(मनुष्य है ही ऐसा..)
लक्ष्य भी है, मंज़र भी है,
चुभता मुश्किलों का, खंज़र भी है !!
प्यास भी है, आस भी है,
ख्वाबो का उलझा, एहसास भी है !!
रहता भी है, सहता भी है,
बनकर दरिया सा, बहता भी है!!
पाता भी है, खोता भी है,
लिपट लिपट कर फिर, रोता भी है !!
थकता भी है, चलता भी है,
मोम सा दुखों में, पिघलता भी है !!
गिरता भी है, संभलता भी है,
सपने फिर से नए, बुनता भी है !!
मनुष्य है ही ऐसा..
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तुम्हारे पाँव के नीचे कोई ज़मीन नहीं
कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें यक़ीन नहीं
मैं बेपनाह अँधेरों को सुब्ह कैसे कहूँ
मैं इन नज़ारों का अँधा तमाशबीन नहीं
तेरी ज़ुबान है झूठी ज्म्हूरियत की तरह
तू एक ज़लील-सी गाली से बेहतरीन नहीं
तुम्हीं से प्यार जतायें तुम्हीं को खा जाएँ
अदीब यों तो सियासी हैं पर कमीन नहीं
तुझे क़सम है ख़ुदी को बहुत हलाक न कर
तु इस मशीन का पुर्ज़ा है तू मशीन नहीं
बहुत मशहूर है आएँ ज़रूर आप यहाँ
ये मुल्क देखने लायक़ तो है हसीन नहीं
ज़रा-सा तौर-तरीक़ों में हेर-फेर करो
तुम्हारे हाथ में कालर हो, आस्तीन नहीं
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ऐ मेरे दोस्त तू आँसू बहाता क्यों है,
जहाँ तेरी कद्र ना हो उस गली जाता क्यों है?
तू खुद ही ज़िम्मेदार है अपनी रुसवाई का,
आखिर ग़ैरों की बातों में आता क्यों है?
कड़वा ही सही मगर सच बोलना सीख,
बेमतलब यूं बहाने बनाता क्यों है?
तू तो कहता है कि तू हमदर्द है मेरा,
मदद करके फिर एहसान जताता क्यों है?
जब ग़म-ए-मोहब्बत से परहेज़ ही करना है,
तो ख़ामख़ाह किसी से दिल लगाता क्यों है?
इन्हें तो बस मज़ा लेने में मज़ा आता है,
ज़माने भर को अपने ज़ख्म दिखाता क्यों है?
अरे कुछ तो सबक लिया कर अपनी गलतियों से,
हर बार वही गलतियां दौहराता क्यों है?
ये लोग जलते हैं तुझे ख़ुश होता देखकर,
यूं बेवजह मुस्कुराकर इन्हें जलाता क्यों है
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सोचते हैं अब याद ना किया जाये उसको,
उसे भी दो घड़ी चैन से रहने देना जरूरी है।।
दुनियां के डर से हमेशा चलते रहे भीड़ वाली राहों पर,
अब मंजिल के लिए खुद में भीड़ बनाना जरूर है।।
ज़िन्दगी... बहुत खूबसूरत है,
कभी हंसाती है, तो कभी रुलाती है,
लेकिन जो ज़िन्दगी की भीड़ में खुश रहता है,
ज़िन्दगी उसी के आगे सिर झुकाती है।
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परिंदों की आवाज़ ने चहचहाने का ज़ोर दिया है
उड़ते ही कट जाती है किसी न किसी की डोर...
फिर भी आज नई उमंग से उड़ने का मन किया है
करदो निलाम मुझे किसी बस्ती मे
मै वही का बन के रह जाऊगा ,
जालिम इन्सान से अच्छा तो मै
जानवर बनजाऊगा ,
झूठी शान लोगो को भाती है ,
वा रे इन्सान क्यूँ क्या सच सुनने मे शर्म आती है ,
अच्छा बनकर क्या पहाड तोड जाओगे ,
अबे जब मुहँ लगेगा निचे तो अपने आप उठ जाओगे ,
दिल को कुछ दर्द भी देना जरूरी है,
जहर इस ज़िन्दगी का पीना जरूरी है।।
थोड़ा दूसरों के काम आ सके हम,
कुछ ऐसा भी तो करना जरूरी है।।
ये महफ़िल समझ ना पाए आपकी बातों को,
खुद को थोड़ा मासूम बनाना भी जरूरी है।।
कोई भी नही सुनता हमारी दिल की बातों को,
लगता है अब दर्द को दबा देना ही जरूरी है।।
नींद को पलकों पे रख लो आप सब,
हमारे लिए आंखों में ख्वाबों को जीना जरूरी है।।
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