कुछ चलेगा जनाब, कुछ भी नहीं
चाय, कॉफी, शराब, कुछ भी नहीं
(~ 'अना' क़ासमी)
ख्वाहिशें कल हुस्न की महमान थीं,
चाय को भी नाश्ता कहना पड़ा।
(~ जुबैर अली ताबिश)
चलो अब हिज़्र के किस्सों को छोड़ो
तुम्हारी चाय ठंडी हो रही है
(~ ज़ुबैर अली ताबिश)
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छोड़ आया था मेज़ पर चाय
ये जुदाई का इस्तिआरा था
(~ तौकीर अब्बास)
इतनी गर्मजोशी से मिले थे,
हमारी चाय ठंडी हो गई थी।
(~ Khalid Mehboob)
बहकते रहने की आदत है मेरे कदमो को,,
शराब खाने से निजलूं के चाय खाने से।।
(~ राहत इंदौरी)
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ज़माना भूल जाते है तेरे एक दीद के खातिर...
ख्यालों से निकलते हैं तो सदियाँ बीत जाती हैं...
( अल्लामा इक़बाल )
सदियाँ बीत जाती है ख़्यालों से निकलने में...
मगर जब याद आती है तो आँखे भीग जाती है...
दर-अस्ल उसको फ़क़त चाय ख़त्म करनी थी
हम उसके कप को सुनाते रहे ग़ज़ल अपनी
(~ जुबैर अली ताबिश)
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मेरी खामोशियों में भी फसाना ढूंढ लेती है.....
बडी शातिर है ये दुनिया, बहाना ढूंढ लेती है,
हकीकत जिद किए बैठी है चकनाचूर करने को....
मगर हर आँख फिर सपना सुहाना ढूंढ लेती है,
न चिडिया की कमाई है न कारोबार है कोई....
वो केवल हौसले से आबोदाना ढूंढ लेती है,
उठाती है जो खतरा हर कदम पर डूब जाने का....
वही कोशिश समंदर मे खजाना ढूंढ लेती है,
जुनूं मंजिल का, राहों में बचाता है भटकने से....
मेरी दीवानगी... अपना ठिकाना ढूंढ लेती है .....!!
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सुस्त ज़िन्दगी के दिन चार देखिये,
तेज़ भागते वक़्त की रफ़्तार देखिये
सिकुड़ती हुई उम्र के कमरे के बाहर
ख्वाहिशों की लम्बी क़तार देखिये,
रंगीपुती रिश्तों की दीवारों के अंदर
घर बनाती रंजिश की दरार देखिये
दुकाने इंसानियत की बंद हो गयीं
वहशियत का हर तरफ बाजार देखिये
झुक के पाँव छूती थी जो शोहरतें
आज उन्हें ही सर पर सवार देखिये
बाँट ली हैं साँसे बराबर के हिस्सों में
आंसू और हंसी के बीच करार देखिये
शायद कोई हमको खोजकर ले आये
गुमशुदगी का देकर इश्तेहार देखिये
दिल तो कबका इसमें दफ़न हो चूका
अब तो सिर्फ जिस्म की मज़ार देखिये...
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मै उसे देख रहा था वो मुझे देख रही थी
मगर मोहतरमा ने ना नज़रे मुकलम्म किया
और ना नूर को कम किया
मेरे शरीर का हर अंग
मुझसे पूछ कर काम करता है
बस आंखों से बहने वाले आंसू
बिना कहे ही चले आते हैं
हे पगली तू खुद को क्या समझती है
तुझसे लाख गुना अच्छी तो मेरी मां है
जो बिना बोले ही मेरी आवाज सुनती है
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एक गर्म बहस चाट गई वक्ते मुकर्रर,
मुद्दे जो थे वो चाय के प्यालों में रह गए।
(~ फानी जोधपुरी)
कल के बारे में जियादा सोचना अच्छा नहीं
चाय के कप से लबों का फासला है जिंन्दगी
(~ विजय वाते)
महीने में किसी रोज कहीं चाय के दो कप,
इतना है अगर साथ, तो फिर साथ बहुत है
(~ अना क़ासमी)
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मैं झुका गया तो वह सजदा समझ बैठे
मैं तो इंसानियत निभा रहा था
वो खुद को ख़ुदा समझ बैठे
भरी बरसात में उड़कर दिखा माहिर परिंदे
सूखे मौसम में तो तिनके भी सफर कर लेते हैं
कभी कभी मेरी आँखे
यू ही रो पडती है।
मै इनको कैसे समझाऊँ
कि कोई शक्स चाहने से
अपना नही होता।
तमन्ना थी तुम भी अपनी बात करो
रातो को जग के मेरे साथ रात करो।
सवालो का सिलसिला ऐसे चलता
बस बाँहों में आकर पूरी कायनात करो।
दूसरों की इज़्ज़त पर कीचड़ उछालने वालो की
एक दिन अपनी ही इज़्ज़त उछल जाती है,
इसलिए आप कोशिश करे की इस
उछल कूंद से दूर रहे...
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वो एक बार कभी तूने बताया था मुझे
हवा से तेरे तसव्वुर की रिश्तेदारी है
सहम रहा है दीप, आज आँधियों में मेरा
अब बचे या कि बुझे तेरी जिम्मेदारी है
जुर्म करने वाले को दाम
मयखाने में जाम
बेवफाई का इल्ज़ाम
खाक में मिल गया आम इंसान
सारी उम्र..
यूँ ही गुजर गई..
रिश्तों की तुरपाई में..
कुछ रिश्ते पक्के निकले..
बाक़ी उधड़ गए..
कच्ची सिलाई में..
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इतनी हिम्मत तो नहीं कि दुनिया से छीन सकूँ तुझे
लेकिन मेरे दिल से तुझे कोई निकाल सके
ये हक़ तो मैंने अपने आप को भी नहीं दिया.
बचके रहना इन बदलती हवाओं से,
हमें तो इन्होंने अपना आशिक ही बना दिया,
हफ्तों से लेटे हैं बिस्तर-सी सलाखों में,
बाहरी दुनिया से हमारा रिश्ता ही मिटा दिया।
तुम्हारी आंखों की गहराई में
खोना चाहता हूं मैं,
भर के बाहों में तुम्हें
सोना चाहता हूं मैं।
भले मुंह से न कहें पर अंदर से,
खोए आप भी हो, खोए हम भी हैं,
लाली आंखों की बताती है,
रोए आप भी हो, रोए हम भी हैं
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हिज्र की रात चराग़ का जलना
मेरे हांथों मेरे ख़्वाब का जलना
खिला था हाथ मे अपने गुल कोई
हाँथ का जलना गुलाब का जलना
तड़प के जल उठी है कई ग़ज़लें मेरी
हर्फ का जलना के किताब का जलना
यह जिंदगी क्या चाहती है...
कुछ पल की खुशियों के बाद
हजारों गम थमा जाती है...
बिखरे हुए हर पल को जोड़कर
फिर से एक नया सबक सिखा जाती है...
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मैंने अपनी माँ से पूछा
..
कम्प्यूटर इतने स्मार्ट क्यूं होते है,
..
माँ ने बहुत सुंदर जवाब दिया,
..
क्योंकि वो अपने मदरबोर्ड की सुनते है..!!
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ये कैसी जिंदगी है.?
जो रोते-रोते भी,
हँसना सिखा जाती है...
कट रही जो रीत है,
ये जिंदगी का गीत है,
कौन तेरा प्रीत है?
वह प्रीत है या मीत है।
शुरू हुआ जो यह सफर,
बदल रहा है हर शहर,
इंतजार में है मेरा घर,
टटोलता अतीत है।
कट रही जो रीत है ,
यह जिंदगी का गीत है।।
बचपन की जहाँ खिली कली,
भूल चुका हूँ वह गली,
माँ-बाप हैं, उम्मीद है,
आँसू मोती,आँख सीप है।
कट रही जो रीत है.......
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